वकील स्वाति जिंदल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के मशहूर निर्णय में वर्णित विशाखा गाइड लाइन के मुताबिक कार्यस्थल पर यौन सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति जवाहर नवोदय विद्यालयों में महिला शिक्षिकाओं की स्थिति पर देश व्यापी जांच कराई जाए ताकि पता चले कि वहां इंटरनल जांच के लिए बनाई गई समितियां कितनी कारगर हैं.
जवाहर नवोदय विद्यालय में महिला शिक्षक के मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर केंद्र सरकार और जवाहर नवोदय विद्यालय समिति सहित जवाहर नवोदय विद्यालय इंटरनल समिति से जवाब तलब किया है. पीड़ित शिक्षिका की याचिका के मुताबिक हरियाणा के एक जवाहर नवोदय विद्यालय में कुछ पुर में कुछ पुरुष शिक्षक परिसर में ही रहने वाली शिक्षिकाओं से बदतमीजी और यौन प्रताड़ना करते हैं.
उनकी बात न मानने पर वो सीनियर क्लास के लड़कों से बदतमीजी करवाते हैं. पीठ पीछे उनके बारे में गलत प्रचार करते हैं. वकील जिंदल के मुताबिक पीड़ित शिक्षिका ने परेशान होकर 14 फरवरी 2024 को अपना इस्तीफा भी दे दिया है. नोएडा में रीजनल कमिश्नर और जयपुर में डिप्टी कमिश्नर ने इस्तीफा स्वीकार नहीं किया. क्योंकि स्कूल प्रशासन को आपत्ति है कि उसमें घटनाक्रम का ब्योरा क्यों है.
स्कूल प्रशासन को इसलिए ये नागवार गुजर रहा है कि इस्तीफे में जो वजह लिखी गई है वो गलत है. जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने पहले तो याचिकाकर्ता की वकील डॉ स्वाति जिंदल गर्ग से कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट जाने को कहा, लेकिन जब उन्होंने कहा कि पीड़ित महिला शिक्षक याचिकाकर्ता मानसिक तौर पर सदमे में है. लिहाजा बार-बार उनके लिए चंडीगढ़ आना-जाना बेहद मुश्किल है. याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली निवासी होने के कारण शिक्षिका ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था, लेकिन वहां भी हरियाणा तक न्यायक्षेत्र न होने की बात कहते हुए कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया था.
फिर याचिकाकर्ता ने दलील रखी कि नवोदय विद्यालय तो पूरे देश में हैं. लिहाजा समस्या का दायरा भी बड़ा है. तब सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी कर दिया. वकील स्वाति जिंदल ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट के मशहूर निर्णय में वर्णित विशाखा गाइड लाइन के मुताबिक कार्यस्थल पर यौन सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रति जवाहर नवोदय विद्यालयों में महिला शिक्षिकाओं की स्थिति पर देश व्यापी जांच कराई जाए ताकि पता चले कि वहां इंटरनल जांच के लिए बनाई गई समितियां कितनी कारग हैं.
लिहाजा वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने बुनियादी अधिकारों में शामिल गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार की रक्षा की गुहार लगाने सुप्रीम कोर्ट आई हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार सहित सभी प्रतिपक्षियों को.नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.